रविवार, 12 जून 2011

कथा-प्रसंग: घमसाण

पोथी समीक्षा
कथा-प्रसंग: घमसाण

-कुन्दन माली

‘घमसाण’ में कुल सोळै कहाणियां है- घमसाण, उकळती पीड़, धूड़, उबाक, राशिफळ, लंगोटियौ, आ’लणौ, बलवंतियो, पतौरी भुआ, बदजात, घर, मुसाण, तेल, मुट्ठी रो कसाव, चोखलौ अर ऊसर जमीन अर आं कहाणियां में उत्तरी राजस्थान रै किसान री जीवाजूंण री अबखायां अर विडरूपतावां रा चितराम मौजूद है। इण रै टाळ जीवण रा नैना-नैना पण मेताऊ प्रसंग अर अभाव रा दरसाव ई है अर साथै आपसरी रिस्ता-नाता अर संवेदनाऊ ताना-बानां री बुणगट ई निंगै आवै।

दिनूगै इज भैंस रौ दूध काढ़ण री टैम भैंस दूध चढ़ाय देवै अर चौथू रै टाबरां नै चा रा फौड़ा पड़ जावै तद पाड़ौसी ई बहाना बणायनै दूध उधार देवण सूं नट जावै तद घर में घमसाण माच जावै। चौथू आपरी घरवाळी चम्पा नै भांडण ढूकै पण छेवट में चम्पा भैंस रौ दूध काढ़ लावै। इण ढाळै ‘घमसाण’ कथा जमानै री बदळती हवा रौ असर गांव तकात में घुस जावण री प्रवृत्तियाँ नै उजागर करै जद के दूजी कांनी ‘उकळती पीड़’ कहाणी लुगाई रै चरित्र माथै घरवाळै री संका नै परगट करै। संका अर अणविस्वास रै पांण गिरस्ती री गाड़ी रै गड़बड़ाय जावण रा घटनाक्रम साम्हीं आवै पण छेवट में मामलौ पाछौ सुधर जावै। क्यूंके मानवसुभाव नै समझणौ दौरी बात है, पण लुगाई जात पुरूस रै सुभाव नै सावळ ढंग सूं समझ लिया करै। ‘धूड़’ कहाणी मास्टर जेठाराम रै समचै नसाखोरी रै पांण आपरै सर्वनास री आदत नै उजागर करै अर इण बात री सांनी करै के नसाखोर मिनख नै सरम-लियाज के रोजी-रोटी अर आजीविका री नैतिक पवित्रता सूं कोई लेवणौ-देवणौ नीं व्हिया करै। ‘उबाक’ कहाणी में आ इज बात साम्हीं आवै जद बाप मूळजी आपरै बेटै मांगियै सूं माडाणी दारू मंगायनै पीवण में कोई सरम मैसूस नीं करै अर उण री गिरस्ती री हालत बिगड़तां जेज नीं लागै। ‘राशिफळ’ में ज्योतिष माथै अंधविस्वास सूं बेसी आस्था री बात उजागर व्है अर आस्था नै तर्क री ताकड़ी में नीं तोली जाय सकै। ‘लंगोटियौ’ में पीढि़यां रै हेतभाव माथै बदळतै जमानै री हवा री तासीर नै अरथावण री कोसिस करी है।

‘बलवंतियौ’ अर ‘बदजात’ दोनूं कहाणियां में धार्मिक अर समाजू पाखंड अर कुरीत री बात है अर आ बात है करियावर री। बलवंतियौ आपरै पिता रै मिरतुभोज सूं नट जावै क्यूंके वौ इण चीज नै आछी नीं मानै अर उण री माली हालत ई कोई चोखी नीं है। पण औ मामलौ ‘बदजात’ कहाणी में ओर ई आगै जाय पूगै जद बदळू नै पिंडत लोग उण री गाय रै मरियां पछै ई किरिया-करम करण नै मजबूर करै अर जद वौ नीं मानै तौ आखौ गाम उण रौ बायकाट कर देवै अर उण नै खुद इज मरी थकी गाय नै घसीटनै हाड़ा-रोड़ी में नाखै। अठै आपां नै कथाकार री संवेदना नै समझण वास्तै पतौरी भुआ नाम रै पात्र री मनगत नै समझणी पड़ै- ‘भाभी थूं म्हारै कानी देख। जीवण मांय अबखायां रै सिवाय ओर कीं नीं मिळ्यो, पण जीवण री आस अबार ई बाकी है। जूण तौ पूरी करणी ईज पड़ै। कोई हंस-खेल’र बिता देवै तौ कोई चिंता मांय डूब’र। अबखायां रौ मुकाबलौ करण री हिम्मत राखणी चाइजै।’ ‘आलणौ’ कथा री कमली व्हौ चावै ‘पतौरी भुआ’, अै दोनूं ई चरित्र जूंण सूं लड़ता-भिड़ता पात्र इज है अर सुख-दुःख वां रै साथै आंख-मिंचावणी रौ खेल खेलता रैवै। अनाथ होवण री पीड़ अर दायजा वास्तै बहुवां नै मार देवण री अमानवीय टेव रा दरसाव ई अठै परगट व्है।

परम्परावां रै खंडन अर मंडन नै ‘घर’ अर ‘मुसाण’ कहाणियां में देख सकां। जठै अेक कानीं गाड़ोलिया लुवार रै परिवार रै समचै घर मांडण री परम्परा री सांतरी सरूआत ‘घर’ कहाणी में व्है, तौ दूजी कानीं ‘मुसाण’ कहाणी कहाणी में जीवण री आपाधापी रै पांण मिनख री मिरतु रौ मुलायजौ कायम नीं राखण री बात उजागर व्है। मानवीय सम्बन्धां अर परम्परावां नै अबै निभाय लेवणौ दोरौ लखावै क्यूंके किणीं रै कनै टैम नीं है। टैम री कमी रै कारण मुरदै रौ दाग देंवती बगत कोई वठै छेकड़ सुधी नीं रुकै। आ असल में मिनख रै मसीन बणता जावण  री प्रक्रिया इज है। ‘तेल’ कहाणी भारतीय समाज रै मामूली मिनख री बेबसी, लाचारी अर आक्रोस नै उजागर करै तौ दूजी कानीं ‘मुट्ठी रौ कसाव’ में बुढ़ापै में मां-बाप नै बिसराय देवण री औलाद री मनगत अर मावितां री पीड़ नै वाणी देवण री कोसिस करी है। बाल-मनोविग्यान री दीठ सूं ‘चोखलौ’ अर किसोर मनोविग्यान री दीठ सूं ‘ऊसर जमीन’ उल्लेखजोग है। मिनखांजूण में संवेदना रै अलोप होवता जावण री प्रक्रिया नै लेखक चोखला रै मारफत उजागर करै जिकौ खेत में फसल बरबाद करती चिड़कली रै मर जावण सूं काठौ दुःखी व्है जावै अर दूजी दांण भाटै री मार सूं कागलै रै मर जावण पछै उण री भूख-तिरस ई मर जावै पण उण रौ काकौ तौ इण बात नै सफा मामूली इज मानै। ‘ऊसर जमीन’ में भोपा-भोपी री पड़ बांचण रौ काम चालै पण किणीं जवान रौ ध्यान पड़ सुणण सूं बेसी तौ टीका-टीपणी अर मसखरी में इज बेसी रमै। अबै टीवी अर वीडियो रै आणंद साम्हीं पड़ री कांई बिसात? जीवण री मीठास अर मिनखीचारै रै मोलां रै लोप होवण री बात अठै उजागर व्ही है।

‘घमसाण’ री कहाणियां रौ शिल्प, भासा अर भावसंवेदन इण रै चरित्रां रै अनुभव अर अनुभूतियां नै सचेत, सावचेत अर सावळ ढंग सूं पेस करण में सक्षम लखावै अर कहाणियां रा छोटा-छोटा वाक्य अर संवाद-शैली कथा-प्रवाह नै वैवस्थित ढाळै आपरै मुकाम सुधी पूगावै। इण रै ढाळ विस्वासजोग चरित्र अर जूंण री जीवंत छवियां सूं सम्पन्न पात्र आं नै प्रामाणिकता बगसै। कथा-सूत्र री सावळ समझ अर कथा बुणगट में बेकार रौ उळझाव नीं होवणौ ई इण खूबियां में गिण्यौ जावणौ चाईजै।

पोथी संदर्भ: घमसाण/ कथा संग्रै/ सत्यनारायण सोनी/ सुरजीत प्रकाशन, व्यापारियान मोहल्ला, बीकानेर (राजस्थान)/ पैली खेप 1995/ पेज 80/ मोल 80 रिपिया।
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